
जहाँ तेरे नक्शे-ए-पा हैं
दो और पैर भी मिलते हैं
हिज़्र के काँटे मत देख यहाँ
वस्ल के फूल भी खिलते हैं
काली अंधेरी रातों मैं
जब चाँद भी एक परछाई है
तू ख़ुद को तन्हा क्यों कहता है
हम साथ साथ ही चलते हैं
जीस्त(ज़िंदगी) तेरे पे सखत सही
मुझे हाथों से सहलाने दे
तू दुनिया से रूठ गया
अब आकर मुझे मनाने दे
तेरी राहों को अपने
आँसू से नम करने दे
मत रोक मुझे तेरी बस्ती के
कुछ शोले तो काम करने दे
तू फूलों पे चलना कल
उन राहों पे मुस्कान लिये
जिन राहों पर आज चलो तो
पाओं के छाले जलते हैं
काली अंधेरी रातों मैं
जब चाँद भी एक परछाई है
तू ख़ुद को तन्हा क्यों कहता है
हम साथ साथ ही चलते हैं
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